What is Raag In Indian classical music
राग का मतलब क्या हे ?
हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत को हम रागदारी संगीत भी बोलते हैं तो रागी शब्द कहां से आया आज हम यह कहते हैं कि यह मैं यह राग आ रहा हूं या वह राग आ रहा हूं मतलब राग क्या चीज है तो राज है तो उसके क्या नियम है इसके बारे में हम यह पोस्ट में देखने वाले हैं.
नाट्यशास्त्र के रचनाकार भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र में जातियों का वर्णन किया है यानी उस समय जाति गायन प्रचलित था हम रागों की जब बात करते हैं तो इन्हीं जातियों की आगे रागों की उत्पत्ति हुई ऐसा विद्वानों का मत है.
राग का सबसे पहला वर्णन ब्रह्देशी ऐसा ग्रंथ है जिसे मतंग मुनि ने रचाया है तो सबसे पहले इसी ग्रंथ में राग का मतलब और राग किस बारे में बताया गया है.
यह मतंग मुनि ने कहा है ( रंजय्ते इति राग ) यानी जो रंजन करे उसे राग कहलाता है और राग के बारे में यह भी कहा है की स्वर और वर्ण से विभूषित ऐसी रचना जो चित्त का रंजन करें उसे राग हेम और श्लोक में भी यह कहा गया है यानी एक ऐसी विशेष ध्वनि जो स्वर और वर्ण से विभूषित है इसके साथ जन के चित्त का रंजन करें उसे हमरा कहते है और दूसरी भाषा मैं बताए तो आनंदिता और प्रसन्नता की प्राप्ति हो उसे राग कहते हैं.
तो उसको यह भी बोला जाता है जब तक वह हमारे चित्र को पसंद ना करें यह में आनंद ना दे उसे राग नहीं कह सकते तो यहां पर एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही गई है राग के बारे में वह उसकी रंजकता को लेकर है और उसी रंजकता की वजह से भारत शास्त्रीय संगीत को पूरे विश्व संगीत से अलग दिखाई देता है .
अब जब हम राग की बात करते हैं चिराग में कुछ ऐसी बातें हैं जैसे विशेषताएं हैं जिसका हमें ध्यान रखना पड़ता है
तो सबसे पहली बात है राग का किसी ठाट से उत्पन्न होना.
पंडित भातखंडे जी ने 10 विध थाट वर्गीकरण यानी 10 विधि से घाटों का वर्गीकरण किया अलग-अलग रागों को उनके स्वरों के देखते हुए स्वरों के स्वरूपों को देखते हुए उस में डाल दिया गया.
जैसे कि हम राग भैरव की बात करें राग भैरव में रे और ध कोमल है तो हम यह देखेंगे कि कौन से थाट जो है जिसमें यह राग सुरों के हिसाब से फिट आता है तो थाट भेरव के साथ ये मेल करता हे .
उसी प्रकार के दूसरा राग अहीर भैरव उसमें हम देखते हैं कि स्वरों के हिसाब से यह थर्ड भैरव के अंदर जाता है तो इसीलिए उसी के अंतर्गत उसे भी लिया जाता है तो कहने का तात्पर्य यह है कि बहुत से राग उसी के स्वरों को देखते हुए उसके स्वरूप को देखते हुए पंडित घाट भातखंडे जी ने दस अलग-अलग थाठ बनाए गए और उनको इन रागों में फिट कर दिया गया इनका विभाजन कर दिया यह जो 10थाट थे जेसे की बिलावल थाट कल्याण थाट खमाज थाट भैरव थाट पूर्वी थे आसवरी थाट भैरवी तोडी थाट मरवा थाट इस प्रकार से स्वरों को देखते हुए उनको रागों में डाला गया तू कोई भी राग जब गाया जाता है.
तो उसमें उसके स्वरों को देखते हुए हमको सबसे पहले उसका जो नियम है किसी थाट के अंतर्गत ही होना चाहिए अभी एक प्रश्न आपके मस्तिष्क में आया होगा भैरव राग है वह भैरव ठाट में ही है तो इसका मतलब भैरव थाट भैरव राग एक ही चीज है ? असल में थाट के अंतर्गत जो राग आए उसमें प्रमुख जो राग है उसमें प्रमुख जो राग है यानी जिसके बिल्कुल सारे सारे लक्षण जो है वह उस थाट से मिलते हो उसी को वह थाट का नाम दिया गया अभी हमरा का दूसरा नियम देखते हैं वह है रागों की जाति सा रे गा मा पा धा नि यह जो सात स्वर है इनमें से कितने स्वर वह राग में प्रयोग होते हैं तो देखा जाए तो राग में तीन मुख्य तरह की जाती है
षड्व
ओड़व
सम्पूर्ण
- संपूर्ण गाने सातों स्वर अगर किसी भी रागों में 7 स्वर प्रयोग होते हैं तो उसे बोलते हैं संपूर्ण जाति .
- अगर किसी भी राग में 6 स्वर प्रयोग होते हैं तो उसे षडाव जाती कहा जाता है.
- अगर किसी भी राग में सिर्फ 5 स्वर प्रयोग होते हैं तो उसे ओड़व कहा जाता हे .
- तो इस प्रकार तीन मुख्य जातियां है और इसके अंतर्गत जो जातियां बनती है ओड़व सम्पूर्ण , ओड़व षडाव.
- तो देखा जाए तो कुल मिलाकर 9 जातियां है उसके अंतर्गत ही रागों को आना चाहिये .
और एक मुख्य बाद भी है. किसी भी राधा को बनाते वक्त उसका एक नियम है. कम से कम उस में पांच स्वर और अधिक से अधिक उसमें सात स्वर होना ही चाहिए सात स्वर के अलावा हमारे पास और नहीं है तो इसके लिए कम से 5 स्वर और अधिक से अधिक ७ होना चाहिए तो यह नियम फॉलो करना पड़ता है राग बनाते टाइम अगर ५ से भी कम स्वर है तो हम उसे राग नहीं कह सकते उसे हम कोई धुन कहेंगे तो राग का यह भी और एक नियम है किस समय कौनसे राग को गाया जाए राग का अर्थ है रंग यानी रंग कौन सा हे जब आप रागों को गाओ गे या बजाओ गे तो आप को जो भावना मिलती हे वो आप केसा फीलिंग देती हे यानी रागों को सिनाने के बाद आनद की अनुभूति होना चाहिये इसका मतलब ये नहीं के अगर आप राग को गाते बजाते समय राग से सिर्फ आनद ही मिले इसका मतलब ये हे की वह राग से क्या रस उत्पन्न हो रहा हे.
हर एक राग में अलग अलग भाव होते हे
किस किस राग में
करुण रस
गंभीर रस
शांत रस
वासल्य रस
ये जो भावो का रंग हे यहां रंग से तात्पर्य है यानी यह जो भाव है इसकी जो छाप हमारे मन में ह्रदय में जो अंकित होती है उसे ही हम रंग जाएंगे राग कहते हैं तो राग यानी रंग इसका मतलब आपको अभी पूरा क्लियर हुआ होगा
तो हम जब राग नियम की बात करते हैं तो रात का एक समय है इसी समय उतरा को गाया जाता है तो उस राग को उस समय गाते हुए एक विशेष भाव प्रकट होता है और वही वही एक राग विशेषता है.
देखिए राग किसी थाट से उत्पन्न होता है तो रात और थाट में क्या फर्क है यह भी जानना जरूरी है थाट हम ऐसे कह सकते हैं पीता और पुत्र थाट पीता है पुत्र जो है वह राग है तू थाट में सातों स्वरों का होना जरूरी है मगर राग में ऐसा नहीं है राग में कम से कम पांच और अधिक से अधिक साथ स्वर होते हैं यानी किसी राज्य में निषिद्ध भी है और नी कोमल भी है यह राग में प्रयोग हो सकता है मगर थाट में ऐसा नहीं है थाट में जो स्वर बनाए गए हैं सात स्वर उसमें फिक्स है जैसे खमाज थाट के अंतर्गत कोमल नी होना जरूरी है यह उसका नियम है.
लेकिन उसके अंतर्गत जो राग आते हैं उसमें शुद्ध नि और कोमल नि दोनों का प्रयोग होता है तो यह किसी राग के अंतर्गत आ सकता है लेकिन ठाट में ऐसा नहीं होता राग की सबसे बड़ी विशेषता जो है राग का रंजक होना राख से आनंद मिलना या प्रसन्नता मिलना या उससे कुछ भाव प्रकट होना तो थाट में रंजकता जरूरी नहीं है यानी ठाट जो है वह एक नियम है जिसे हमें फॉलो करना है तो थाट को रंजक होना यह आवश्यक चीज नहीं है तो यह राग और थाट में सबसे महत्वपूर्ण चीज है .
थाट में आरोह से ही पता चल जाता है थका मगर राग मैं आरोह और अवरोह होना जरूरी है मैं उम्मीद करता हूं कि इस पोस्ट से आपको सभी चीजें क्लासिकल राग क्या होता है राख किसे कहते हैं इसके बारे में आपको जरूर कुछ आपके नॉलेज में मदद मिली होगी तो जरूर आपकी राय कमेंट में दीजिए मैं ऐसे अच्छे अच्छी पोस्ट आपके लिए लाता रहूंगा धन्यवाद.