अगर आप को संगीत सीखना हे तो ये सब आप को पता होना चाहिये
संगीत में कुछ परिभाषिक शब्द है जो हम
अक्सर करते हैं इस्तेमाल करते हैं आज हमें परिवार के बारे में बात करेंगे सबसे
पहले मैं आपको बताऊंगा संगीत की परिभाषा क्या है दोस्तों बोलचाल की भाषा में संगीत केवल
गायन को ही समझा जाता है जो हम गाते हैं हमें लगता है केवल संगीत वही है मगर असल
में संगीत गायन वादन और नृत्य इन तीनों के समूह को संगीत कहते हैं इस प्रकार संगीत
के तीन मुख्य अंग है सबसे पहला अंग है गायन दूसरा अंग वादन और तीसरा अंग है नृत्य दोस्तों पश्चिमी देशों में संगीत केवल
गायन और वादन कोई समझा जाता है वाहन नृत्य को संगीत में नहीं रखा गया मगर
हिंदुस्तान में संगीत में यह तीनों चीजें आ जाती है गायन वादन और नृत्य गायन वादन
नृत्य इन तीनों में घनिष्ठ संबंध रहा है केवल इतना ही नहीं तीनों एक दूसरे के पूरक
है
दोस्तों में अगर संगीत की परिभाषा बताओ
तो यह होगी संगीत वह लोक कला है जिसमें स्वर और लाइक के द्वारा हम अपने भाव को
प्रकट करते हैं
दोस्तों अब देखते हैं संगीत पद्धति क्या
है
दोस्तों भारत देश में दो प्रकार के
संगीत प्रचलित है जिन्हें संगीत पद्धति कहते हैं एक का नाम है
उत्तरी संगीत पद्धत यह इन संगीत पद्धति
भी बोला जाता है और
दूसरा है दक्षिणी अथवा कर्नाटक के संगीत
पद्धति
दोस्तों हम अभी संगीत के प्रकार की बात
करते हैं
भारतीय संगीत में मुख्य दो प्रकार है
शास्त्रीय संगीत और भाव संगीत सुगम संगीत दोस्तों शास्त्रीय संगीत उसे कहते हैं
जिसमें नियमित छात्र होता है और जिस में कुछ खास नियमों का पालन करना आवश्यक होता
है उधर नार्थ शास्त्रीय संगीत में रागों के नियमों का पालन करना पड़ता है ना करने
से राग गलत बच सकता है इसके अलावा और ताल की सीमा में रहना पड़ता है गीत का कौन सा प्रकार
हम गा रहे हैं उसका निर्वाह भी उसी प्रकार का होना चाहिए
उसके अलावा भाव संगीत या लाइट म्यूजिक
लाइव संगीत या भाव संगीत में शास्त्रीय
संगीत जैसे नियम व अटी नहीं होते जना इसका कोई शास्त्र होता है भाव संगीत का मुख्य
उद्देश्य होता है कि कानों को अच्छा लगे इसमें कोई बंधन नहीं होता चाहे कोई भी सर
हम यूज कर सकते हैं चाहे कितनी भी बार उसे रिपीट करते हैं और उसमें स्वरों के लिए
भी और किसी ताल के लिए भी कोई बंधन नहीं आप तान सरगम कुछ भी
यूज कर सकते हैं भाव संगीत का मुख्य उद्देश्य रंजकता है रंजकता जानी मनोरंजन करना
भाव संगीत को दूसरे लफ्जों में हम लाइट संगीत भी कहते हैं
राग और राग की परिभाषा क्या है
ध्वनि की विशेषता को जिसमें स्वर तथा
वर्ण के कारण सौंदर्य हो जो मानव के चित्र का रंजन करें बुद्धिमान लोग उसे राग कहते हैं
अगर ने आसान शब्दों में बताओ तो कम से
कम 5 और अधिक से अधिक सात सुरों की व सुंदर रचना जो कानों को अच्छी लगे वह
लाती है आजकल राय नहीं बहुत प्रचलित है मित्रों रागों में कुछ बातों का होना बहुत
जरूरी होता है राग
किसी न किसी थाट से उत्पन्न होना चाहिए रागनी रंजकता यानी
सुंदरता होनी चाहिए राग में कम से कम 5 अवश्य होनी चाहिए राग में एक स्वर के दो रूप इकट्ठे बजाने
या गाने शस्त्र कानून ने इसका विरोध किया गया है उदाहरण के
तौर पर राग में आरोही शुद्ध और कोमल ग नहीं लगेगा आरोह और अवरोह होना जरूरी है क्योंकि इनकी बिना राग का रूप पहचाना
नहीं जा सकता किसी भी राग में सा स्वर वर्ण नहीं होता मध्यम और पंचम यह दोनों स्वर एक साथ या एक समय
कभी भी वर्जित नहीं होते राग में वादी संवादी स्वर भी अवश्य होते हैं इंश्योर ऊपर
ही विशेष जोर रहता है
दोस्तों अभी देखते हैं राग की
जाति क्या होती है
दोस्तों थाट के शुरू से ही
राख की उत्पत्ति होती है जितने भी राग होते हैं सभी राग किसी ना किसी ठाठ से ही
उत्पन्न हुए होते हैं थाट में 7 होने जरूरी होते हैं परंतु जरूरी नहीं है राग में सात स्वर ही हो किसी भी थाट के स्वरों में से 5 6 7 चोरों को लेकर जब कोई राग तैयार किया जाता है तू जितने भी वह राग में स्वर
उपयोग किए जाते हैं उसी हिसाब से उसकी जाति तय हो जाती है इस प्रकार स्वरों की
संख्या के अनुसार 3 जाति मानी गई है एक ओड़व षडाव सम्पिर्ण
दोस्तों अभी देखते हैं आरोह और अवरोह की
परिभाषा क्या है
गाते बजाते समय हम देखते हैं गायन अथवा
वादन किसी एक स्वर पर बहुत ज्यादा समय नहीं रखता बल्कि ऊपर ज्यादा चलता रहता है
इसी को आरोह और अवरोह करते थे और साधारण भाषा में अगर समझा जाए तो चोरों को चढ़ते
समय बोलेंगे आरोह और उतरते समय को बोलेंगे अमरोहा
दोस्तों अभी देखते हैं वादी संवादी और
अनुवादी स्वर क्या होते हैं
रागनी प्रयोग किए जाने वाले तीन
श्रेणियां है वादी संवादी और अनुवादी राख का सबसे महत्वपूर्ण स्वर यानी वादी
कहलाता है अर्थात राख के अन्य स्वरों के मुकाबले विश्व में सबसे ज्यादा हमें रुकना होता है उसे हम वादी
स्वर कहते हैं इसके बाद है संवादी राख का सबसे महत्वपूर्ण दूसरा स्वर उसे संवादी
कहते हैं अगर देखा जाए तो वादी मतलब राजा और संवादी मतलब पंतप्रधान तो सबसे ज्यादा
राइट्स और सबसे ज्यादा इंपॉर्टेंट दिए जाते हैं वह होता है वादी स्वर और जिसको
दूसरी पोजीशन में या दूसरे सबसे ज्यादा उसके पास अधिकार होते हैं वह होता है
संवादी स्वर
अनुवादित स्वर वादी संवादी के अतिरिक्त
राग में प्रयोग होने वाले सभी स्वर अनुवादी स्वर कहलाते हैं और आसान भाषा में अगर
मैं आपको बताऊं राग में सबसे ज्यादा स्वर्ग इस्तेमाल किया जाता है उसे हम वादी
कहते हैं उसके बाद वादी के बाद जिसे सबसे ज्यादा बजाया जाता है या गाया जाता है
उसे हम संवादी स्वर कहते हैं और तीसरा जो इन दोनों के बाद जिसे सबसे ज्यादा
इंपॉर्टेंट देना चाहिए वह होते हैं अनुवादित स्वर अगर और
आसान तरीके से समझाया जाए तो वादी स्वर याने राजा और संवादी स्वर यानी पंतप्रधान
और अनुवादित स्वर यानी बाकी की प्रजा
तो दोस्तों यहां पर हमने देखा कि राग या
इंडियन क्लासिकल म्यूजिक आपको अगर सीखना है यानी शास्त्रीय संगीत आपको अगर सीखना
ही समझना है तो आपको कम से कम ऊपर दी हुई जानकारी आपको चाहिए तभी जाकर आप
शास्त्रीय संगीत को कुछ तौर पर समझ सकते हो अभी इसमें मैंने आपको वादी संवादी या
आरोह अवरोह इन सब का कुछ महत्व बताया अगर इसके और डिटेल में जाना रहेगा तो आप मेरे
बाकी पोस्ट भी देख सकते हो जिसमें आपको बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी इसमें मिल
जाएगी थैंक यू